शुक्रवार, अक्तूबर 06, 2006

वह नहीं जानता दर्द !

वह नहीं जानता दर्द!
लाख में एक को होती है बीमारी
” 
मैं पढता हूँ अखबार मे
पर
युद्ध, हिंसा और बर्बरता की इस दुनिया मे
कहीं गलत तो नहीं
यह डॉक्टरी आँकडा ?
और फिर वह नहीं जानेगा दर्द
तो क्या वह जान पायेगा मानवता ?
खैर!
दर्द को जानना और समझना
अपने आप मे दर्द पैदा करना है
और दर्द को न जानना भी
एक दर्द है
दुआ है कि
वह जान पाए दर्द
पर कुछ
शायराना अंदाज मे
यूं कहूं तो बेहतर होगा
खुशकिस्मत है वह
कि इस बेदर्द दुनिया मे
नहीं जानता दर्द !

5 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

Achhi kavita likhi hai aapni...
http://dev-poetry.blogspot.com/2008/09/blog-post_6546.html

Unknown ने कहा…

Je suis très motivée par cela. vous gardez mai prochain spectacle
à elle.

बेनामी ने कहा…

What Does This Mean?

बेनामी ने कहा…

Nice poem.I think u r a good poet and it's a good poem.Isn't it

Unknown ने कहा…

bahut achha likha hai