मैं अब भी कह
सकता हूं
कि बारिश का
घर आसमां में है कहीं
और उसे
ढूंढना है मुझे – तुम्हारे लिये
मैं अब भी
देख सकता हूं
इन्द्रधनुष
किसी की आंखों में
तितलियों को
गाते , हवा को संगीत बजाते
सुन सकता हूं
और
दिन में तारे
गिन सकता हूं
मैं अब भी
तुम्हारे और
मेरे बीच
कोई अनकहा
रिश्ता
पनपा था कभी
हां, मैं कह सकता
हूं अब भी
पूरे यकीन से|
4 टिप्पणियां:
so sweet of you sir
really a very nice poem
are yaar tu to abhi bhi pahale jaisa likhta hai.
सुंदर रचना
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