शुक्रवार, फ़रवरी 05, 2010

मैं अब भी कह सकता हूं


मैं अब भी कह सकता हूं
कि बारिश का घर आसमां में है कहीं
और उसे ढूंढना है मुझे तुम्हारे लिये

मैं अब भी देख सकता हूं
इन्द्रधनुष किसी की आंखों में

तितलियों को गाते , हवा को संगीत बजाते
सुन सकता हूं
और
दिन में तारे गिन सकता हूं
मैं अब भी

तुम्हारे और मेरे बीच
कोई अनकहा रिश्ता
पनपा था कभी
हां, मैं कह सकता हूं अब भी
पूरे यकीन से|

4 टिप्‍पणियां:

Mahak ने कहा…
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Mahak ने कहा…

so sweet of you sir

really a very nice poem

Unknown ने कहा…

are yaar tu to abhi bhi pahale jaisa likhta hai.

बेनामी ने कहा…

सुंदर रचना