रविवार, अगस्त 18, 2013

पीछे कही दिन ... आगे कही रात है

पीछे कही दिन 
आगे कही रात है 
समय के परे 
जैसे कोइ बात है 

छूटता है कुछ 
ख़त्म नहीं होता 
पहले और बाद में नही 
सब मौजूद एक ही तो साथ है 

पीछे कही दिन 
आगे कही रात है 
और कही आगे दिन 
और कही आगे फिर कही रात है 
और और कही आगे 
शायद 
न दिन है न रात है 

फिर कुछ दूर चलने पर 
दिखने लगे है तारे 
और कुछ दूर जाने पर 
हो जाए प्रकट, जाने कौनसी सौगात है 

जीवन जो लगता बस थोड़ी दूरी सा 
शायद बिना ओर -छोर फ़ैली कोइ बात है 

पीछे कही दिन 
आगे कही रात है

August 18, 2013

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