फिर मरूं फिर जिऊँ
शनिवार, अक्तूबर 23, 2021
फिर मरूं फिर जिऊँ
फिर गीत लिखूं
फिर कविता पढूं
फिर हँसू फिर फफक रो पडूँ
फिर पुलकूं
फिर छलक पडूं
क्या करूं मोक्ष का
मैं इक फूल हूं
क्यूँ न फिर से खिलूँ
फिर महकूँ…
(2014)
रविवार, जुलाई 04, 2021
रविवार, जून 20, 2021
वो छत वाले घर
वो छत वाले घर
आसमान से होती थी
बातें जहां सीधी
हवा में उड़ते फिरते थे
बिना ही पर
कहाँ गए वो
छत वाले घर
छतें नहीं तो आसमाँ नहीं
आसमाँ नहीं तो ख़्वाब कहाँ
गिन कर मिलती हैं साँसें
अपार्टमेंट्स में
ज़िंदगी वैसी बेहिसाब कहाँ
इंद्रधनुष तक आ जाते थे चौक में
वो छत वाली डोलियाँ कूदकर
हवा में उड़ते फिरते थे बिना ही पर
कहाँ गए वो छत वाले घर ।
(Nov 2020)
शुक्रवार, जून 04, 2021
बुधवार, अप्रैल 28, 2021
मैं तय न कर पाया
उधर मस्जिद से अजान उठ रही थी
इधर पैमाने से जाम छलका था
मैं तय न कर पाया कि खुद से मिलूँ कि ख़ुदा से 🤷♂️
बुधवार, मार्च 10, 2021
शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2021
रविवार, फ़रवरी 07, 2021
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