इन यादों तक को
कोइ ले गया था चुराकर
और हम इस उम्मीद में जीते रहे
कि अब किसी की कैद में है ये यांदें जिंदगी भर
फिर लौटा गया कम्बख्त
पीछे मुड के भी न देखा उसकी निगाहों ने एकबर
न उसपे कोइ तकादा रहा न कोइ बहाना ए दीदार
यादों के साथ गम दे गया सारे डबल-ट्रिपल कर |
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