सोमवार, नवंबर 30, 2020

फिर उठी लहर

फिर उठ गई

लहर

फिर मिट गई ।

ज़िंदगी एक ख़्वाब सी 

गुजर गई ।


फिर उठी लहर

फिर मिट गई ।

गुरुवार, नवंबर 26, 2020

इन यादों तक को

इन यादों तक को 

कोइ ले गया था चुराकर

और हम इस उम्मीद में जीते रहे

कि अब किसी की कैद में है ये यांदें जिंदगी भर 


फिर लौटा गया कम्बख्त 

पीछे मुड के भी न देखा उसकी निगाहों ने एकबर 

न उसपे कोइ तकादा रहा न कोइ बहाना ए दीदार 

यादों के साथ गम दे गया सारे डबल-ट्रिपल कर |

शनिवार, नवंबर 07, 2020

धीरे धीरे चाय मेरी बनती है ☕

धीरे धीरे चाय मेरी बनती है ☕


सुबह की अलस सी करवटें लेती
कसमसाती सुगबुगाती
एक नए दिन
एक नई जिंदगी के आगाज़ में
रंग फिर अपना बदलती है

धीरे धीरे चाय मेरी बनती है

गिन कर डाली गई थोड़ी सी मिठास
और कूट कर मिलाई थोड़ी ज्यादा सी अदरक का कड़क स्वाद

जिंदगी से कम थोड़ी है...

न जाने कितने 
कितने उफान लेती है
तब कहीं जाकर 
छनती है

धीरे धीरे चाय मेरी बनती है☕

(July 22, 2020)