गुरुवार, नवंबर 14, 2019

बड़े होने की जद में...

बाबू
बड़े होने की जद में
भूल गए हम तो
कि बचपन भी होता है
गौर करे आदमी तो पाए
जीवन से मरण तक
बस खोता ही खोता है

चलो थोड़ा ठहर जाएं
फिर किसी पानी की छोटी सी धार में
कागज़ की एक बड़ी नाव तैरायें

फिर किन्ही वृद्धों के साथ
पार्क में बेंच पर बतियाये
फिर किसी फूल के पास
तितली सा मंडराएं

मेले में खोए थे हम तब भी
और मेले में आज भी हैं मन भरमाए
चलो खेल सा खेलें इस जीवन को
फिर बिना वजह हम खिलखिलाएं

बाबू
बड़े हुए हम सो हुए
जीवन की पुलकित निश्छलता से
फिर एक बार चलो हम हाथ मिलाएं।

बचपन तो आएगा ना दोबारा
क्यूँ ना बस जरा सहज हो जाएं
और मुस्काएँ।

(November 14, 2019)

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