(एक)
जैसे मौत का समय होता है
ऐसे ही ज़ुकाम
का भी
आती ही है
मौसम बदलते
ही
याद दिलाने
को
जीवन सिर्फ
गति ही नहीं , ठहराव भी है
-----------------------
(दो)
अपने बचपन के
शहरों से
हम उखाड़ दिए
जाते है
गाजर, मूली की तरह
बिना हमारी
मर्ज़ी के
जैसे
जीवन बढ़ता /
गुजरता है आगे
मौत की तरफ -
बिना हमसे पूछे
-----------------------
(तीन)
खण्डहरो को
तोड़कर
नए मकान
बनाये हमने
अपने ही
पुरखो को भूलकर
अपनी
अमरता के ख्वाब बुनते हुए
----------------------
(चार)
मौत को नहीं
जानते हम
न कभी एक घड़ी
रुककर कोशिश ही करते
शायद इसीलिए
फिर वो मौका भी न देती हो
एक क्षण का
भी
रुककर उसे
जानने का
-----------------------