शुक्रवार, जुलाई 11, 2014

मै बेचैन होता हूँ एक तरह से

यह सोचते हुए की 
हम क्यों है 
हम जीते क्यों है 
ब्रह्माण्ड कितना बड़ा है 

मैं विस्मय से भर जाता हूँ 
मै बेचैन होता हूँ एक तरह से 
और वैसे बहुत शांत हो जाता हूँ 

यह सोचते हुए की 
हम क्यों है 
हम मरते क्यों है 
समय कब से है और उसके पहले क्या 

मैं विस्मय से भर जाता हूँ 
मै बेचैन होता हूँ एक तरह से 
और वैसे बहुत शांत हो जाता हूँ

कब जानूंगा मै 
जो है जानने को 
कब मैँ मुक्त होऊंगा जान लेने से 
और जान लेने की इछ्छा से 
अच्छा होता जल्दी होता 
हालांकि ईमानदारी से मैं नही जानता कि यह अच्छा होता या नहीं 

यह सोचते हुए 
यह महसूस करते हुए 
यह आँखों में भरते हुए 
यह शब्दों में न उलीच पाते हुये 
हृदय में छुपाये 
इस दर्द को सहेजते हुए 

विस्मय से भर जाता हूँ मै 
बहुत बेचैन हो उठता हूँ एक तरह से 
और वैसे बहुत शांत हो जाता हूँ मै 

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