यह सोचते हुए की
हम क्यों है
हम जीते क्यों है
ब्रह्माण्ड कितना बड़ा है
मैं विस्मय से भर जाता हूँ
मै बेचैन होता हूँ एक तरह से
और वैसे बहुत शांत हो जाता हूँ
यह सोचते हुए की
हम क्यों है
हम मरते क्यों है
समय कब से है और उसके पहले क्या
मैं विस्मय से भर जाता हूँ
मै बेचैन होता हूँ एक तरह से
और वैसे बहुत शांत हो जाता हूँ
कब जानूंगा मै
जो है जानने को
कब मैँ मुक्त होऊंगा जान लेने से
और जान लेने की इछ्छा से
अच्छा होता जल्दी होता
हालांकि ईमानदारी से मैं नही जानता कि
यह अच्छा होता या नहीं
यह सोचते हुए
यह महसूस करते हुए
यह आँखों में भरते हुए
यह शब्दों में न उलीच पाते हुये
हृदय में छुपाये
इस दर्द को सहेजते हुए
विस्मय से भर जाता हूँ मै
बहुत बेचैन हो उठता हूँ एक तरह से
और वैसे बहुत शांत हो जाता हूँ मै
और वैसे बहुत शांत हो जाता हूँ मै
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें