ईमान अपना , खुद सलामत, बाहिसाब
रक्खूं मैं
किसी और के पैमाने पे आखिर, क्या-क्या नाप रक्खूं मैं
किसी और के पैमाने पे आखिर, क्या-क्या नाप रक्खूं मैं
हां! तैरना नही आता मुझको,
तो क्या डूब जाने का
हुनर भी बेअंजाम रक्खूं मैं
ये इक फूल है
और वो एक बच्चा हंसता हुआ
और ये जो हैं
बस वो हैं
"अल्लाह" तेरे सिवा, इनका और क्या
नाम रक्खूं मैं
पैसे,किताब,पुरानी यादें
, सब उधार चुका दो मेरा
वक्त हुआ
लौटने का, समेट कर एकबार फिर सब सामान रक्खूं मैं
सोचता रहा
ज्यादा, जीया कम
जिस्म मे
अपने उस शख्स को , और कब तक सम्हाल रक्खूं मैं
1 टिप्पणी:
wah kya jabardast likha hai
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