शुक्रवार, सितंबर 01, 2006

कविता, किताब और कम्प्यूटर

कविता, किताब और कम्प्यूटर
इन तीनों के बीच
खुश रह्ता हूँ मै

मै कह डालता हूँ
उन चीजों को
जिनको मह्सूस करता हूँ मै

जाना जा चुका है जो
कुछ और जानने-पहचानने के लिए
उस सबको भी
जान लेना चाहता हूँ मै

हम जो तमाम करते है
हम जो दिमाग रखते है
हम जो दिमाग मे पालते है दिल को
हम जो महसूस करते है
हम जो जानते है
और हम जो रखते है जानने की इच्छा

आखिर हम जैसे हैं वैसे क्यों हैं
और क्या हो जाना चाहते हैं
बस यही सब कुछ एक मशीन को
सिखा देना
चाहता हूँ मै

यों इन तीनों के बीच
खुश रहता हूँ मै
कविता, किताब और कम्प्यूटर!

5 टिप्‍पणियां:

renu ahuja ने कहा…

computer hi sahi,
yug badalney ka sanket bhi hai,

insaan sey machine key sambandh kaa aadhunki pariched bhi hai,

huaa karti thi kitaaben hi kabi sachee mitr bhi

aub wo jagah shaayad leney lagey hain computer bhi,

ye sab to maukaa hai keval insaan ki srijantaa ko samteney kaa

sunder bhaavo ki abhivakti se bad kar sundr aur kuchh bhi nahi.

aapki kavitaa kitaab aur computer padi ,achee lagi, sweekar kijiey hamari ye pratikriyaa bhi.

regards,
Smt. Renu Ahuja.

The Ignorant ने कहा…

श्रीमती रेणू जी,

कम्प्यूटर हमारी रोजी है,

किताबें, इस अज्ञानी की रोटी हैं
और कविता सांसों की गोटी है।


यह कविता मेरे परिचय का एक हिस्सा है।

खैर, हिन्दी कविता के इस दौर में, आप जैसे लोगों को सक्रियता के लिए साधुवाद।
कविता संग्रह की प्रस्तुति को और बेहतर बनाने के लिए आपके सुझाव आमंत्रित हैं।

आगे भी, आपके सतत् आशीर्वाद की अपेक्षा में।
सादर,

नवीन

बेनामी ने कहा…

kripaya sampark me rahe!

बेनामी ने कहा…

Just wanna say... This is your a shadow of good work. Keep it up!

Unknown ने कहा…

computer hamari roji hai
kitabe,iss agyani ki roti hai.
aur kavita sanso ki goti hai
aur pathako ki prtikriyaye oxegen hai