मंगलवार, जुलाई 01, 2003

तुम

शोर मे
शान्ति सी तुम
भोर में
आरती सी तुम

पंछी मे
पंखों सी तुम
बंसी में  
छिद्रों सी तुम

हकीकत में 
भ्रान्ति सी तुम
स्वप्न में 
जीती जागती सी तुम

कला में 
सृजन सी तुम
प्रेम में 
समर्पण सी तुम

धडकनों के लिए
हृदय सा केतन हो तुम
जानते हुए
बनता जो अनजान
वो
अवचेतन हो तुम !





कोई टिप्पणी नहीं: