वो छत वाले घर
आसमान से होती थी
बातें जहां सीधी
हवा में उड़ते फिरते थे
बिना ही पर
कहाँ गए वो
छत वाले घर
छतें नहीं तो आसमाँ नहीं
आसमाँ नहीं तो ख़्वाब कहाँ
गिन कर मिलती हैं साँसें
अपार्टमेंट्स में
ज़िंदगी वैसी बेहिसाब कहाँ
इंद्रधनुष तक आ जाते थे चौक में
वो छत वाली डोलियाँ कूदकर
हवा में उड़ते फिरते थे बिना ही पर
कहाँ गए वो छत वाले घर ।
(Nov 2020)
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