ट्रेन में हूँ,
कर रहा हूँ सफर
मैं ठहरा हूँ
गुज़र रहा है ये शहर
इन खेतों में
फिर उगेंगी नई फसलें
होगी फिर रात
नई सुबह और फिर दोपहर
मेरे भी जहन में
ये उम्र लेती करवटें
गुजर रही तमाम
सहर दर सहर
ओ मेरे हमगुज़र
इस गुज़रते शहर में
चल तू और मैं
दो घड़ी
अब जाएं कहीं ठहर।
(Train -somewhere in North India during Feb-March 2019)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें