मेरी हिन्दी कवितायें
ज़िंदगी है उम्र के साथ बेशुमार बढ़ती जाएगी
रंगों की छटा इसमें बहार बन के छाएगी
ख़ुशबुएँ
किसको नहीं भाती
काँटों से
निकलकर जो हैं ये आती ।
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