सोमवार, सितंबर 25, 2006

कभी पूरा न हो पाने के लिए...

कभी पूरा न हो पाने के लिए
तुम्हें लिखे
किसी अधूरे खत की तरह
गुजरेंगे अब दिन
और मैं भी
तुम बिन ।

मंगलवार, सितंबर 05, 2006

प्यार

तुम्हें होगा
तो जानोगे
कि बिना हुए
जाना नहीं जाता।

शनिवार, सितंबर 02, 2006

ओ पंछियों

ओ पंछियों
क्यों आते हो तुम
और बनाते हो बसेरा
मेरे घर के बगल में खडे
इस ऊंचे से पेड पर
जबकि
तुम यह जानते हो कि
एक दिन तो सूख ही जाना है इसे
फिर किस पर
आ उडोगे तुम
फिर क्यों इस पर बसते और उजडते हो तुम
क्या इसका सूख जाना टालने के लिए ?

ओ पंछियों
ओ रंग बिरंगे पंछियों
सर्दियों की धूप में क्यों आते हो तुम
जबकि तुम यह जानते हो कि
मैं अपनी हर कमजोरी को पालता रहूंगा
दुनिया के दर्द को सालता रहूंगा
और यूं मेरा इस क्रम से कभी पीछा न छूटेगा
फिर क्यों आते हो तुम
क्या इस भ्रम को मुझसे निकाल पाने के लिए ?

ओ पंछियों
ओ मधुर कंठ गवईयों
क्यों आते हो तुम
मेरे घर के बगल में खडे इस ऊंचे से पेड पर
और फिर
क्यों छोड कर चले जाते हो तुम इसे
अपनी यादें इन गिलहरियों के कोटरों में भरकर
मैं
सीख लेना चाहता हूं
इन गिलहरियों से
इनके जीने का तरीका
जो तुम्हारे न होने के बावजूद
कभी, कहीं नहीं जाती इस पेड को छोडकर

ओ पंछियों
ओ मानवों की दुनिया से दूर
किसी और दुनिया के वाशिंदों
आओ बैठो
मेरी इस कामनासिक्त देह पर
और बनाओ अपना घर
आओ
इस पर बसो और इसे उजाड जाओ
इसे बसाने के लिए
ये अभी बाकी है
तुम्हारे मधुर गीत गुंजाने के लिए
आओ
कि ये अभी बाकी है
तुम्हारे यहां आकर चले जाने
और फिर वापस लौट कर आने के इंतज़ार में
रिक्त हो जाने के लिए ।

शुक्रवार, सितंबर 01, 2006

कविता, किताब और कम्प्यूटर

कविता, किताब और कम्प्यूटर
इन तीनों के बीच
खुश रह्ता हूँ मै

मै कह डालता हूँ
उन चीजों को
जिनको मह्सूस करता हूँ मै

जाना जा चुका है जो
कुछ और जानने-पहचानने के लिए
उस सबको भी
जान लेना चाहता हूँ मै

हम जो तमाम करते है
हम जो दिमाग रखते है
हम जो दिमाग मे पालते है दिल को
हम जो महसूस करते है
हम जो जानते है
और हम जो रखते है जानने की इच्छा

आखिर हम जैसे हैं वैसे क्यों हैं
और क्या हो जाना चाहते हैं
बस यही सब कुछ एक मशीन को
सिखा देना
चाहता हूँ मै

यों इन तीनों के बीच
खुश रहता हूँ मै
कविता, किताब और कम्प्यूटर!